युवक एक वो भोला था
हर द्वार अभी ना खोला था
पर, एक हल्की सी दस्तक पर
दिल मधुर स्वरों में बोला था
वो प्रेम जो पहले कच्चा था
जो प्यथम प्रहर में बच्चा था
उसे ढाल रहा था यौवन में
तब छूट गया जब सच्चा था
वो मधु जो उसको प्यारा था
जिसको जीवन में उतारा था
उसे लूट गया कोई भँवरा
वो आज स्वयं से हारा था
वो मधु जो उसने खोया था
पर एक आँसू ना रोया था
उसे ढाल लिया था जीवन में
अपने शब्दों में पिरोया था
वो फिर जीवन में आया था
शब्दों को गले लगाया था
फिर करके प्रेम लेखनी से
अपनी मधुबाला को पाया था
# चेतन " अड़भंगी "