Motivational Poet

रूप बसा एक अंतर्मन में

ढूँढ रहा हूँ उसे गगन में

पर लगती है हाथ निराशा

कैसे पूरी होगी आशा

आशा पर संसार टिका है

और ये मेरा प्यार टिका है

 

बसी हुई एक चंचल छाया

है जिसकी साँवली सी काया

आँखें जिसकी हैं मृग जैसी

लहराती है निगिन जैसी

उसे कामिनी का नाम दिया है

प्रेम को ये अंजाम दिया है

 

क्या उसको मैं पा भी सकूँगा

लिखा जो उसपे, गा भी सकूँगा

बस मेरे इस प्रेम का कारण

कर ले कोई रूप ये धारण

जब उसको मैं प्रेम ये दूँगा

तभी चैन से जी भी सकूँगा

 

जो ना मिली तो कैसे जिऊँगा

कैसे ये अपमान पिऊँगा

मैं आपने इस प्रेम की खातिर

यूँ ही लिखूँगा, यूँ ही जिऊँगा

उसको इस मन में धारण कर

कर दूँगा इस प्रेम को अमर

 

# चेतन  ” अड़भंगी “

# sundaypoet

 

23-06-2019